Hidma Naxal Encounter बस्तर: छत्तीसगढ़ के बस्तर में लम्बे वक़्त से सक्रिय रहकर खूनी वारदातों को अंजाम देने वाला खूंखार माओवादी और माओवदियों के समिति का सीसी मेंबर माड़वी हिड़मा को मार गिराया गया है। उसपर एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित था। हिड़मा के मारे जानें की पुष्टि तेलंगाना के DGP ने भी कर दी है।
जानकारी के मुताबिक सुरक्षाबलों ने उसकी पत्नी राजे को भी मार गिराया है। यह पूरी मुठभेड़ आज सुबह छत्तीसगढ़-तेलंगाना बॉर्डर पर हुई है। नक्सल उन्मूलन अभियान में यह इस साल पुलिस की दूसरी सबसे बड़ी कामयाबी मानी जा सकती है। पुलिस और फ़ोर्स ने इसी साल के मई में नक्सलियों के शीर्ष नेता रहे बसवाराजू उर्फ़ केशव नम्बाला को भी ढेर कर दिया था।
Sukma naxal encounter: सुकमा में जमकर आतिशबाजी
हिड़मा के मारे जाने के बाद उसके गृहजिले सुकमा में जश्न का माहौल है। नक्सली लीडर के एनकाउंटर के बाद सुकमा में जगह-जगह आतिशबाजी की जा रही है।
कैसी होती थी माड़वी हिड़मा की सुरक्षा व्यवस्था?
हिड़मा, माओवादी संगठन के लिए बेहद अहम नेता था। तमाम सीसी मेम्बर्स के एनकाउंटर के बीच वह छत्तीसगढ़ में लगातार सक्रिय था। बात करें हिड़मा के प्रोटोकॉल की तो वह बेहद सख्त था। कई पूर्व नक्सली जो हिड़मा के अंगरक्षक रह चुके है और अब सरेंडर कर चुके है, उन्होंने अपने इंटरव्यू में कई बड़े खुलासे किये है। उन्होंने बताया है कि, आम नस्कली नेताओं से अलग हिड़मा का खाना सिर्फ उसके अंगरक्षक ही तैयार करते थे। बात करें हिड़मा के सुरक्षा की तो, वह बेहद सख्त सुरक्षा की बीच चलता था। तीन स्तरों में हथियारों के साथ अंगरक्षक हर पल उसकी सिक्योरिटी में तैनात रहते थे। बताया गया है कि, A B C के तौर पर तीन सेक्शन में बॉडीगार्ड तैनात रहते थे। इनमें हर सेक्शन में 10 नक्सली होते थे जिनके पास एके-47 और इंसास जैसे घातक स्वचालित हथियार होते थे। इतना ही नहीं बल्कि हिड़मा से मिलने की इजाजत हर किसी को नहीं होती थी। सिर्फ एसीएम यानी एरिया कमेटी मेंबर या फिर उससे ऊपर के माओवादियों से ही हिड़मा मिलता तह और बातें करता था।
कौन था माड़वी हिड़मा?
हिड़मा जिसका पूरा नाम माड़वी हिड़मा है, कई और नामों से भी जाना जाता है। हिड़मा उर्फ संतोष उर्फ इंदमुल उर्फ पोडियाम भीमा। मोस्ट वांटेड की सूची में टॉप इस नक्सली की कद काठी कोई खास आकर्षक नहीं बल्कि यह कद में नाटा और दुबला-पतला है, जैसा कि सुरक्षा बलों के पास उपलब्ध पुराने फोटो में दिखाई देता है। हालाँकि अब पुलिस के पास उसकी ताजा तस्वीर भी मौजूद है। ये बात अलग है कि बस्तर के माओवादी आंदोलन में शामिल स्थानियों की तुलना में उसका माओवादी संगठन में कद काफी बड़ा है। वर्ष 2017 में अपने बलबूते और रणनीतिक कौशल के साथ नेतृत्व करने की क्षमता के कारण सबसे कम उम्र में माओवादियों की शीर्ष सेन्ट्रल कमेटी का मेम्बर बन चुका है। माओवादियों के इस आदिवासी चेहरे को छोड़कर नक्सलगढ़ दण्डकारण्य में बाकी कमाण्डर्स आंध्रप्रदेश या अन्य राज्यों के रहे हैं। इनमें भी ज्यादातर कमांडर मारे जा चुके है, लेकिन हिड़मा पुलिस के लिए प्राइम टारगेट बना हुआ था।
आखिर हिड़मा कैसे बन गया नक्सली?
Hidma Naxal Encounter Today: इस सवाल का जवाब वो इलाका है ,जहां से वो आता है। हिड़मा का गांव पूवर्ती बताया है, जो सुकमा जिले के जगरगुण्डा जैसे दुर्गम जंगलों वाले इलाके में स्थित है। यह गांव जगरगुण्डा से 22 किलोमीटर दूर दक्षिण में है,जहां पहुंचना बहुत मुश्किल है। ये वो इलाका है। पिछले साल तक यहां सिर्फ नक्सलियों की जनताना सरकार का शासन चलता था लेकिन पुलिस और सुरक्षबलों ने नक्सलियों के इस राजधानी को अपने कब्जे में लिया और यहाँ अब पुलिस कैम्प भी स्थापित कर लिया गया है।
बता दें कि, नक्सलियों के यह गाँव न सिर्फ एक आम गाँव था बल्कि प्रयोगशाला भी थी। नक्सलियों ने यहां अपने तालाब बनवाये थे, जिनमें मछली पालन होता था, गांवों में सामूहिक खेती होती थी। हिड़मा की उम्र यदि 40 साल के आसपास भी मान ली जाए, तो वो ऐसे समय और स्थान पर पैदा हुआ,जहां उसने सिर्फ माओवादियों और उनके शासन को देखा और ऐसे ही माहौल में वो पला-बढ़ा और पढ़ा। हालांकि वो सिर्फ 10 वीं तक ही पढ़ा था, लेकिन अध्ययन की उसकी आदत ने उसे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने में अभ्यस्त बना दिया था। बताते है कि, अंग्रेजी साहित्य के साथ माओवादी और देश-दुनिया की जानकारी हासिल करने में उसकी खासी रुचि थी।
हिड़मा की पहचान का सबसे बड़ा निशान उसके बाएं हाथ की एक अंगुली ना होना है। हमेशा नोटबुक साथ में लेकर चलने वाला ये दुर्दांत नक्सली समय-समय पर अपने नोट्स भी तैयार करता था। वह माओवादी विचारधारा को लेकर बेहद गंभीर था। इसकी पुष्टि, उसके कई अंगरक्षक, जो अब सरेंडर कर चुके है, उन्होंने भी साक्षात्कारों में किया है।
Bastar Naxal News: 35 सालो से था माओवादी संगठन में
Hidma Naxal Encounter Today: वर्ष 1990 में मामूली लड़ाके के रुप में माओवादियों के साथ जुड़ने वाला यह आदिवासी सटीक रणनीति बनाने और तात्कालिक सही निर्णय लेने की क्षमता के कारण बहुत ही जल्दी एरिया कमाण्डर बन गया था। वर्ष 2010 में ताड़मेटला में सीआरपीएफ को घेरकर 76 जवानों की जान लेने में भी हिड़मा की मुख्य भूमिका रही। इसके 3 साल बाद 2013 में जीरम हमले में कांग्रेस के बड़े नेताओं सहित 31 लोगों की जान लेने वाली नक्सली घटना में भी हिड़मा के शामिल होने का दावा किया जाता रहा है। वर्ष 2017 में बुरकापाल में हमला कर सीआरपीएफ के 25 जवानों की शहादत का जिम्मेदार भी इसी ईनामी नक्सली को माना जाता है। खुद ए के -47 रायफल लेकर चलने वाला हिड़मा चार चक्रों की सुरक्षा से घिरा रहता था।




